Tuesday, June 1, 2010

क्या?
यामा एक ऐसी जगह पर जाना चाहती है जहा से संसार का सारा नजारा दिख सके! जैसे पहाड़ी पे जाकर सारा शहर दीखता है। पर ऐसी जगह है कहाँ? संसार में तो हो नहीं सकती। फिर कहाँ?
यामा को ऐसी जगह के सपने आते हैं जिसका न कोई पता है न ठिकाना और तो और इस जगह का कोई आकार भी नहीं। पर ये जगह यामा को खींचती है अपनी और।
जाने क्यूँ ऐसा लगता है की ये दुनिया सिर्फ एक मीटिंग प्लेस है या सर्कस। अजीब अजीब से तमाशे है रोज रोज। अजीब अजीब सी भाषाएँ और अजीब अजीब से मसले!
यामा को कोई परवाह नहीं! हाँ कभी हंसी आती है तो कभी हैरानी होती है।
पर उसे क्या? उसे तो बस उस अनजान ठौर की और जाना है जो उसे हर पल पुकारता है। जैसे वो वही से आई है और उसे वही खो जाना है।
उसकी दीवानगी उम्र के साथ बढ़ रही है। वो हर कंकर को सुनना चाहती है और हर हवा से पूछना चाहती है। पर शब्द नहीं उसके पास...
पूछेगी भी तो क्या? कभी लगता है की उसे पूछने की जरुरत ही क्या है वो अच्छी तरह जानती है..या शायद जानती थी कभी..बस जरा रास्ता भूल गयी है..पर इरादा पक्का है॥
जैसे दीवानगी की हद पार हो जाती है कभी-२...
कभी उस anjaan जगह की दीवानगी में बेमतलब मुस्कुराये जाती है तो कभी बिलख-बिलख के रो पड़ती है। अपने आस पास के लोग जो उसके अंतर्मन में क्या चलता है उससे कोई तालूक नहीं रखते, उन्हें देख के मुस्कुराती है। उनकी बाते उसके लिए बेमानी है। पर हर पल जैसे दुनिया के ढर्रो पर चल के खुद को इस आग में जलती है। शायद उसे अपना आप मिल जाए..शायद वो चिंगारी कही सुलगती हुई उसके पैर पे पड़े और वो ख़ुशी से नाच उठे।
दुनिया के भीड़ में चलती है, भोले, चालक, प्यारे, मासूम चेहरे देख कर मुस्कुराती है..ऑंखें बंद करके एक गहरी सांस खुद में खींचती है..शायद इस सांस में वो मिल जाए जो सदियों पहले पीछे छूट चूका है।
ये आकर्षण है यअ गहरा प्यार, कोई पुराना सम्बन्ध या कोई assignment जो उसे पूरा करना है! वो खुद नहीं जानती पर शायद कुछ ज्यादा ही अच्छी तरह से जी रही है इस अजनबी एहसास को...हर पल..हर लम्हा...सोते...जागते...बस एक ही ख्याल जिसको वो कभी एक शब्द का रूप तक न दे पाई...
दुनिया का हर शब्द छोटा और बेमानी लगता है उसे...कहे भी तो क्या कहे? क्या नाम दे....
चलओ..समय आयेगा जरूर और वो समय का इन्तेजार करना चाहती है॥
यामा बगावती हो रही है...

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